अमीरों, तुम इतने अमीर क्यों हो? जून 30, 2007
Posted by janta in Economy.trackback
एक लाख से अधिक लोग करोड़पति. और एक हम हैं कि एक लाख कमाने के एक करोड़ प्रयास किये और असफल ही रहे. हे करोड़पतियों तुम इतने अमीर कैसे हो?
कोई यह नहीं कह सकता कि मैंने मेहनत नहीं की. मैंने मेहनत की और ईमानदारी से मेहनत की. लेकिन मेरे हाथ क्या लगा. मुश्किल से दो वक्त की रोटी. तन ढकने का कपड़ा. हे करोड़पतियों तुम्हारे पास इतना पैसा है तो करते क्या हो?
मेरी जीभ के स्वाद तय हैं. अगर वह लपकती भी है तो उसे काबू में रखना पड़ता है. कई बार मेरे बच्चे उन दुकानों के आगे जा खड़े होते हैं जहां तुम्हारी चटोरी जीभ चटाचट चटखोरे लेती है. वे बाहर पत्तों और दोनों के जूठन से जिह्वा लालसा को शांत करते हैं. तुमने न देखा हो तो कोई बात नहीं. लेकिन हे करोड़पतियों यह सब देखने के बाद भी तुम्हारी जीभ का स्वाद कसैला क्यों नहीं होता. क्या तुम्हारी इंद्रियों में संवेदना का प्रवाह बंद हो गया है?
हमारे पेट में आग है, तुम्हारे हाथ में भोजन है. आजतक तुमने कोई गठजोड़ बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचा? क्या तुम्हारी बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया है?
मीडियावालों, तुम पैसेवालों का पब्लिक रिलेशन करते हो, करोड़पतियों की लिस्ट पर प्रशंसागीत बजाते हो और जब पेट भर जाता है तो हाजमोला खाने की तर्ज पर गरीबी का रोना रोते हो. क्या तुम लोग वाकई अपने धर्म का पालन कर रहे हो. हे करोड़पतियों तुमने इन मीडियावालों को कैसे पटा लिया. और कुछ नहीं कर सकते तो यही नुख्सा बता दो, कम से कम हमारी बात तो लोगों तक पहुंचेगी.
अमीरों पर बहुत तीव्र व्यंग्य बाण फेंका है आपने….बधाई..
डा. रमा द्विवेदी
ameeron ka to pata nahi par media wale jaroor samvedna heen ho chuke hain.